दाउद अब्राहम के बारे में
जितनी जानकारी बॉलीवुड वालों को है, उतनी शायद R&AW के पास भी नहीं होगी। वह हमेशा से बॉलीवुड फिल्मकारों
का पसंदीदा पात्र रहा है। अनुराग कश्यप की बेहतरीन ब्लैक फ्राइडे (२००७) से लेकर मिलन लुथरिया की वन्स अपॉन अ
टाइम इन मुंबई (२०१०) तक हम उसे देखते आये हैं। हालांकि, हमारे फिल्मकार हमेशा से उसका सीधा नाम
लेने से बचते रहे हैं।
इस फिल्म में निखिल आडवाणी ने दाउद को इकबाल
खान के रूप मे पेश किया है। लेकिन बावजूद इसके, कि वह भारत का नं. १
मोस्ट वांटेड है, हम उससे नफरत
नहीं करते। वह १९९३ के बम्बई बम धमाकों से
लेकर २०१३ के हैदराबाद धमाकों का ज़िम्मेदार है। ऋषि कपूर (जो इस समय अपने टॉप फॉर्म में चल रहे हैं)
ने यह भूमिका निभाई है।
इकबाल कराची में छुपा हुआ है। भारत सरकार 'अमन की आशा' के चलते कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। ऐसे में उसे पकड़ने के लिये R&AW चीफ अश्वनी राव
(नासर) एक सीक्रेट प्लान बनाते हैं। इस मिशन 'ऑपरेशन गोल्डमैन' में वली खान (इरफ़ान), रूद्र (अर्जुन रामपाल), जोया (हुमा कुरैशी) और असलम (आकाश दहिया) शामिल हैं।
इन्हें इकबाल को जिंदा पकड़ के भारत के हवाले करना है।
इसके लिए ये चारों इकबाल के अपहरण की योजना बनाते हैं। लेकिन ऐन मौके
पर ये मिशन फेल हो जाता है। ये
फिल्म का शुरूआती दृश्य है। और फिर हम मिशन के पहले और बाद की कहानी देखते हैं।
फिल्म के मेल एक्टर्स अपने अपने किरदार में फिट हैं। इरफ़ान कई
दृश्यों में बिना डायलॉग के अपनी आँखों से काफी कुछ कह जाते हैं। हुमा कुरैशी
कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाती।
इंटरवल के बाद स्क्रिप्ट बिखरी हुयी सी लगती है। दृश्यों को बेवजह लम्बा खिंचा गया है। गाने बैकग्राउंड में होने के बावजूद फिल्म की गति को कम करती है। निर्देशक और स्क्रिप्ट लेखक अगर चाहते तो फिल्म की लम्बाई २० मिनट आसानी से कम कर सकते थे। और तब शायद ये एक बेहतरीन फिल्म होती।
रेटिंग: **1/2
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