ये फिल्म सिर्फ डेढ़ घंटे की है। हालांकि मेरा मानना है कि हॉरर फिल्में सिर्फ एक घंटे की होनी
चाहिए, क्योंकि ऑडियंस
इसे इससे ज्यादा झेल नहीं सकती और उसके बाद उनका सर दर्द बढ़ने लगता है। (वैसे ये बात पिछले
हफ्ते रिलीज़ हॉरर फिल्म 3जी के सन्दर्भ में
कही गयी है।)
किसी हॉरर फिल्म से ये उम्मीद करना की वो आपको बुरी तरह से डरा देगी, गलत होगा। मुझे नहीं लगता
कोई भी फिल्म दर्शकों को डराने में कामयाब हो सकती है। और अगर कोई फिल्म उन्हें डराने
की जितनी कोशिश करेगी, वे उतना ही खुल कर हंसेंगे।
हम में से ज्यादातर लोग भूत, प्रेत या आत्माओं पे यकीन नहीं करते। मैं भी नहीं करता हूँ। इसके बावजूद हम लोग हॉरर फिल्मों को काफी पसंद करते हैं। ज्यादातर हॉरर फिल्मों की स्टोरी एक जैसी ही होती है। यहाँ भी सीन कुछ ऐसा ही है। लेकिन यहाँ स्क्रिप्ट काफी कसी हुयी है।
अभय (नवाज़ुद्दीन) के शक्की और हिंसक रवैय्ये से परेशान माया
(बिपाशा) ने उससे तलाक ले लिया। उसके फ़ौरन बाद अभय की मौत
एक कार एक्सीडेंट में हो गयी। अभय अपनी बेटी निया से बहुत प्यार करता था। अभय की
मौत के कुछ समय बाद माया को लगता है की निया अपने पापा से बातें करती
रहती है। उसे काफी बुरे सपने भी आते रहते हैं। उसे ऐसा
लगता है की अभय, निया को अपने साथ ले जाना चाहता है। एक पंडितजी या आध्यात्मिक गुरु
(दर्शन ज़रीवाला) इस बात को कन्फर्म भी करते हैं। माया किसी भी कीमत पे अपनी बेटी
की ज़िन्दगी बचाना चाहती है।
साधारण कहानी के बावजूद निर्देशक सुपर्ण वर्मा की स्क्रिप्ट काफी कसी
हुयी है। दोनों लीड एक्टर्स ने बेहतरीन अभिनय किया है। खासकर नवाज़ुद्दीन जिस
सीन में आये, छा गये। हालांकि उन्हें कम फुटेज मिली है। निया के रोल में डॉयल धवन प्रभावित करती हैं। बांकी एक्टर्स साधारण रहे
हैं।
ये फिल्म विक्रम भट्ट और राम गोपाल वर्मा की बिना स्क्रिप्ट वाली
हॉरर फिल्मो से कहीं बेहतर है। कम से कम हॉरर फिल्म के दर्शक वर्ग को ये निराश
नहीं करेगी।
रेटिंग: **1/2
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