22 March 2013

आत्मा (2013)

ये फिल्म सिर्फ डेढ़ घंटे की है। हालांकि मेरा मानना है कि हॉरर फिल्में सिर्फ एक घंटे की होनी चाहिए, क्योंकि ऑडियंस इसे इससे ज्यादा झेल नहीं सकती और उसके बाद उनका सर दर्द बढ़ने लगता है। (वैसे ये बात पिछले हफ्ते रिलीज़ हॉरर फिल्म 3जी के सन्दर्भ में कही गयी है।)

किसी हॉरर फिल्म से ये उम्मीद करना की वो आपको बुरी तरह से डरा देगी, गलत होगा।  मुझे नहीं लगता कोई भी फिल्म दर्शकों को डराने में कामयाब हो सकती है। और अगर कोई फिल्म उन्हें डराने की जितनी  कोशिश करेगी, वे उतना ही खुल कर हंसेंगे। 

हम में से ज्यादातर लोग भूत, प्रेत या आत्माओं पे यकीन नहीं करते। मैं भी नहीं करता हूँ। इसके बावजूद हम लोग हॉरर फिल्मों को काफी पसंद करते हैं। ज्यादातर हॉरर फिल्मों की स्टोरी एक जैसी ही होती है। यहाँ भी सीन कुछ ऐसा ही है। लेकिन यहाँ स्क्रिप्ट काफी कसी हुयी है। 

अभय (नवाज़ुद्दीन) के शक्की और हिंसक रवैय्ये से परेशान माया (बिपाशा) ने उससे तलाक ले लिया। उसके फ़ौरन बाद अभय की मौत एक कार एक्सीडेंट में हो गयी। अभय अपनी बेटी निया से बहुत प्यार करता था। अभय की मौत के कुछ समय बाद माया को लगता है की निया अपने पापा से बातें करती रहती है। उसे काफी बुरे सपने भी आते रहते हैं। उसे ऐसा लगता है की अभय, निया को अपने साथ ले जाना चाहता है। एक पंडितजी या आध्यात्मिक गुरु (दर्शन ज़रीवाला) इस बात को कन्फर्म भी करते हैं। माया किसी भी कीमत पे अपनी बेटी की ज़िन्दगी बचाना चाहती है। 

साधारण कहानी के बावजूद निर्देशक सुपर्ण वर्मा की स्क्रिप्ट काफी कसी हुयी है। दोनों लीड एक्टर्स ने बेहतरीन अभिनय किया है। खासकर नवाज़ुद्दीन जिस सीन में आये, छा गये। हालांकि उन्हें कम फुटेज मिली है। निया के रोल में डॉयल धवन प्रभावित करती हैं। बांकी एक्टर्स साधारण रहे हैं। 

ये फिल्म विक्रम भट्ट और राम गोपाल वर्मा की बिना स्क्रिप्ट वाली हॉरर फिल्मो से कहीं बेहतर है। कम से कम हॉरर फिल्म के दर्शक वर्ग को ये निराश नहीं करेगी। 

रेटिंग: **1/2

13 March 2013

भूत रिटर्न्स (2012)

शायद राम गोपाल वर्मा इकलौते ऐसे साहसी निर्देशक हैं, जो फ्लॉप्स और आलोचनाओं के बावजूद हर साल 2-3 फिल्में बनाते हैं। 

इस फिल्म को मनीषा कोइराला की कमबैक फिल्म कह के प्रचारित किया गया था। लेकिन ये मनीषा की 'गोबैक' फिल्म साबित हो सकती है। ऐसी फिल्म से 'कमबैक' करने से किसी का भी करियर खराब  हो सकता है।

ये फिल्म राम गोपाल वर्मा निर्देशित 'भूत' (2003) का तथाकथित सीक्वल है। भूत (2003) अभिनय और तकनीक, दोनों दृष्टि से अच्छी थी। भूत रिटर्न्स इन दोनों लिहाज़ से कम से कम अच्छी नहीं कही जा सकती। डिपार्टमेंट (2011) में कैमरे से एक्सपेरिमेंट कर चुके वर्मा इस फिल्म को भी 'टेबल के नीचे' और 'पंखे के ऊपर' से शूट करते हैं ये फिल्म 3डी  में भी रिलीज़ की गयी थी। हालांकि, मैंने इस फिल्म को 1डी (डीवीडी) में देखा।

पूरी फिल्म एक घर के इर्द गिर्द घुमती है। "दुनिया में करोड़ों घर होते हैं, लेकिन पता नहीं क्यों कुछ ही घरों को भूत पसंद करते है," जैसा की इस फिल्म में बताया गया है। ये घर उन्ही में से एक है। इस घर में एक कपल अपने बच्चों के साथ अभी अभी शिफ्ट हुए हैं। घर में आने के बाद उनके साथ अजीबोगरीब घटनाएं होने लगती है। 

ये फिल्म कहीं कहीं बहुत ज्यादा फनी हो गयी है। और इस तरह की फिल्मों के साथ ऐसा अक्सर हो जाता है। राम गोपाल वर्मा ने बिना स्क्रिप्ट के बहुत सी हॉरर फिल्में बनायी हैं और ये फिल्म भी अपवाद नहीं है। 

रेटिंग: *1/2